BSEB Class 10 Sanskrit Ch 12 कर्णस्य दानवीरता | Karnsya Danveerta Class 10th Solution Notes

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्‍कृत के पाठ 12 ‘कर्णस्य दानवीरता ( Karnsya Danveerta Class 10th Solution Notes)’ के Book solution को पढ़ेंगे।

Karnsya Danveerta Class 10th Solution Notes

12. कर्णस्य दानवीरता (कर्ण की दानवीरता)

पाठ परिचय (Karnsya Danveerta)

यह पाठ संस्कृत के प्रथम नाटककार भास द्वारा रचित कर्णभार नामक एकांकी से संकलित है। इसमें महाभारत के प्रसिद्व पात्र कर्ण की दानवीरता का वर्णन है। इन्द्र कर्ण से छलपूर्वक उनके रक्षक कवच-कुण्डल मांग लेते हैं और कर्ण उन्हें दे देता है। कर्ण बिहार के अंगराज्य (मुंगेर तथा भागलपुर) के शासक थे। इससे संदेश मिलता है कि दान करते समय मांगने वाले की पृष्ठभूमि का भी जानना जरूरी है, अन्यथा परोपकार का नाश भी हो सकता है।

संस्कृत कक्षा 10 पाठ 12 कर्णस्य दानवीरता (कर्ण की दानवीरता)

यह पाठ ‘भास’ द्वारा रचित ‘कर्णभार’ नामक नाटक का एक विशेष भाग है। इस नाटक की कथा महाभारत से उद्धृत है। महाभारत युद्ध में कुन्तीपुत्र कर्ण कौरवों की ओर से युद्ध करता है। कर्ण के शरीर में स्थित कवच और कुण्डल से उसके रक्षक बहुत सम्मानित होते हैं।
यावत् कवचं कुण्डले च कर्णस्य शरीरे वर्तेते तावत् न कोऽपि कर्णं हन्तुं प्रभवति।
जब तक कवच और कुण्डल कर्ण के शरीर में होते हैं, तब तक कोई भी कर्ण को मार नहीं सकता।
अतएव अर्जुनस्य सहायतार्थम् इन्द्रः छलपूर्वकं कर्णस्य दानवीरस्य शरीरात् कवचं कुण्डले च गृह्णाति।
इसलिए अर्जुण की सहायता के लिए इन्द्र छलांग से दानवीर कर्ण के शरीर से कवच और कुण्डल लेते हैं।
कर्णः समोदम् अङ्गभूतं कवचं कुण्डले च ददाति।
कर्ण खुशी पूर्वक अपने शरीर के अंग में स्थित कवच और कुण्डल देता है।
भासस्य त्रयोदश नाटकानि लभ्यन्ते।
भास के तेरह नाटक मिलते हैं।
तेषु कर्णभारम् अतिसरलम् अभिनेयं च वर्तते।
इनमें कर्णभार का अति सरल अभिनय दिखाया जाता है।

Class 10th Sanskrit Chapter 12 कर्णस्य दानवीरता (कर्ण की दानवीरता)

ततः इंद्र ब्राह्मण रूप में प्रवेश करता है।
शक्र बोलते हैं, “ओ मेघों! तुम सूर्य के पास जाकर रहो।” उन्हें कर्ण के पास जाकर बड़ी भिक्षा माँगनी है।
कर्ण कहते हैं, “भगवन्! मैं आपके प्रति प्रीति भाव रखता हूँ। मैं आपको नमस्कार करता हूँ।”
शक्र बोलते हैं, “क्या मैं आपको दीर्घायु चाहता हूँ इसके बारे में बताऊं? यदि मैं बताऊंगा तो आपको लगेगा कि मैं मूर्ख हूँ। इसलिए दोनों बातों को छोड़कर मैं आपसे कहता हूँ कि आपका यश सूर्य, चंद्रमा, हिमालय और समुद्र की तरह बहुत ऊँचा हो।”

इन्द्र अपने मन में सोच रहा है कि वह इस व्यक्ति के लिए क्या बोले, यदि दिर्घायु हो तो दिर्घायु हो जाएगा और यदि ऐसा नहीं होता है तो वह उसे मुर्ख समझेगा। इसलिए दोनों के बीच कोई ऐसा बोलना ठीक नहीं होगा जो दोनों को प्रसन्न न करे। कर्ण से पूछा जाता है कि क्या दीर्घायु होना अच्छा होगा या नहीं, और कर्ण ने उत्तर दिया कि दीर्घायु होना नहीं बोलना चाहिए और यहीं सही है।

“खुलकरद्ध ओ कर्ण! सूर्य, चन्द्रमा, हिमालय और समुद्र की तरह तुम्हारा यश सदा कायम रहे।” कुतः का जवाब देने के लिए कुछ पहलू हो सकते हैं, जैसे कि वह उसका कारण या प्रयोजन जानना चाहता हो सकता है। “क्योंकि” शब्द किसी विशिष्ट कारण या सम्बन्ध का उल्लेख करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

धर्मो हि यत्नैः पुरुषेण साध्यो भुजङ्गजिह्वाचपला नृपश्रियः।
तस्मात्प्रजापालनमात्रबुद्ध्या हतेषु देहेषु गुणा धरन्ते ।।

भगवान्, आप क्या इच्छा करते हैं? मैं आपको क्या दूं?
एक राजा को धर्म की रक्षा करनी चाहिए क्योंकि राजा की शक्ति या धन बदलते रहते हैं लेकिन यश और सुखदायी कर्म चिर काल के लिए उसके साथ रहते हैं। कर्ण का मतलब है कि राजा के सुख के लिए नहीं, प्रजाओं की रक्षा के लिए राजा देह धारण करते हैं।

शक्र – मुझे बड़ी भिक्षा दीजिए।
इन्द्र – मैं बहुत बड़ी भिक्षा माँगता हूँ।
कर्ण – मैं आपको बहुत बड़ी भिक्षा दूंगा। मैं आपको एक हजार गाय और सामग्री सहित आभूषण दूंगा।
शक्र – ठीक है, मुझे एक हजार गाय चाहिए। मैं थोड़ी दूध पीऊँगा।
इन्द्र – मुझे नहीं चाहिए कर्ण, मैं थोड़ी दूध पीऊँगा।
कर्ण – आप क्या चाहते हैं? मैं आपको हजारों घोड़ों और सामग्री सहित दूंगा।
शक्र – अच्छा है, मुझे हजारों घोड़े चाहिए। मैं एक मुहूर्त बाद वापस आऊँगा।
इन्द्र ने कहा, “मैं हाथियों को चुनौती नहीं देना चाहता हूँ। थोड़ी देर में मैं हाथी पर सवारी करूँगा।”
कर्ण ने पूछा, “आप क्या चाहते हैं? कृपया बताइए! मैं अनेक हाथियों का एक समूह आपको देता हूँ।”
शक्र ने कहा, “मैं एक हाथी पर बैठता हूँ। एक मुहूर्त के बाद, मैं कर्ण को बुलाता हूँ। नेच्छामि कर्ण! नेच्छामि।”
इन्द्र ने उत्तर दिया, “हाथी पर बैठूंगा। थोड़ी ऊपर चढ़ूंगा। मैं कर्ण को चुनौती नहीं देना चाहता हूँ।”
कर्ण ने पुनः पूछा, “आप क्या चाहते हैं? और कुछ बताइए! मैं आपको अपर्याप्त कनक देता हूँ।”
शक्र ने कहा, “मैं जा रहा हूँ। कुछ समय के लिए। नेच्छामि कर्ण! नेच्छामि।”
इन्द्र- मैं भूमि लेकर जाता हूँ।; थोड़ी दूर जाकर मुझे कर्ण से नहीं चाहता। मैं नहीं चाहता।
कर्णः- उससे ही जीतकर मैं भूमि देता हूँ।
कर्ण- मैं उससे जीतकर भूमि देता हूँ।
शक्रः- पृथ्वी के लिए मैं क्या करूँगा।
इन्द्र- मैं भूमि लेकर क्या करूँगा
कर्णः- मैं अग्निष्टोम फल देकर उसे जीतकर मैं अपना सिर देता हूँ।
कर्ण- मैं अग्निष्टोम फल देता हूँ और उससे जीतकर मैं अपना सिर देता हूँ।
शक्रः- अग्निष्टोम फल से क्या होगा?
इन्द्र- मैं अग्निष्टोम फल लेकर क्या करूँगा?
कर्णः- मैं अपना सिर देकर उसे जीतकर अपना सम्मान बचाता हूँ।
कर्ण- मैं उससे जीतकर अपना सम्मान बचाता हूँ और उसके लिए अपना सिर देता हूँ।
शक्रः- अविहा अविहा।
इन्द्र- नहीं, नहीं, ऐसा मत करो।
कर्णः- नहीं करना चाहिए, नहीं करना चाहिए। आपकी कृपा हो। और कुछ बताइए।

कर्ण ब्रह्मण वेशधारी इंद्र से कहता है कि वह कवच कुण्डल के साथ जन्म लिया है। यह कवच देवता और असुरों के द्वारा भेद नहीं है, लेकिन फिर भी अगर आप इसे चाहते हैं, तो मैं इसे आपको खुशी से दूंगा। इंद्र उसे दे देते हैं।
इसके बाद कर्ण यह बताता है कि उसकी इच्छा यहीं है कि वह उपाय जाने के बिना कृष्ण के साथ अकेला खड़ा रहे।
शक्र सहर्षता से कहता है “देते हैं, देते हैं”। जबकि इंद्र प्रसन्नता से कहता है “दे दीजिए”।
धिगयुक्तमनुशासितम्। इसमें कोई संशय नहीं है। (प्रकाशम्) यह लोक लें
कर्ण शल्यराज से कहता है कि अपना अलमल रोकें। देखिए – शिक्षा का क्षय हो जाता है, पेड़ों की मूल भी जड़ होते हैं, जल भी सूख जाता है, लेकिन दी गई आहुति और हवन की चीजें उसी स्थान पर बनी रहती हैं।
शल्य अंगराज से कहता है कि देने की कोई ज़रूरत नहीं है।
कर्ण कहता है कि शल्यराज, अपना अलमल रोको! देखो – शिक्षा का खंडन हो जाता है, पेड़ों की जड़ भी नष्ट हो जाती है, जल भी सूख जाता है लेकिन हवन और दान उसी स्थान पर रहते हैं।
तो दे दीजिए।
समय बीतने पर शिक्षा नष्ट हो जाती है, ठोस जड़वाले पेड़ ढेर हो जाते हैं, नदी के जल स्तर कम हो जाते हैं, लेकिन दिया गया दान और आहुति हमेशा स्थिर रहती है। इसलिए हवन करने और दान देने से प्राप्त किए गए पुण्य हमेशा अमर रहते हैं।
आप इसे ग्रहण कीजिए।

12. कर्णस्या दानवीरता Subjective Questions
लघु-उत्तरीय प्रश्नोनत्तर (20-30 शब्दों में) ____दो अंक स्ततरीय

प्रश्‍न 1. ‘कर्णस्य दानवीरता’मेंकर्ण के कवच और कुण्डल की विशेषताएँ क्या थीं? (2018A)
उत्तर- कर्ण का कवच और कुण्डल जन्मजात था। जब तक उसके पास कवच और कुण्डल रहता, उसे दुनिया की कोई भी शक्ति मार नहीं सकती थी। उन्हें उनके पिता सूर्य देव से अभेद्य कवच और कुण्डल प्राप्त हुए थे।

प्रश्‍न 2. दानवीर कर्ण के चरित्र पर प्रकाश डालें ?
अथवा, कर्णकी चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन करें। (2020AІ, 2018A)
उत्तर- कर्ण एक साहसी और कृतज्ञ आदमी था। वह सत्यवादी था और मित्र के विश्वास के पात्र था। उसने दुर्योधन द्वारा किए गए उपकार को कभी नहीं भूला। अपने पिता सूर्य देव से प्राप्त कवच-कुण्डल के बावजूद, वह इंद्र को दान कर दिया। वह एक दानवीर था। कुरुक्षेत्र में वीरगति को प्राप्त करने के बाद, उसने भारतीय इतिहास में अमर रूप से जगह बनाई।

प्रश्‍न 3. कर्ण कौन था एवं उसके जीवन से हमें क्या शिक्षा मिलती है? (2020AІ)
उत्तर- कर्ण कुंती के पुत्र था। महाभारत के युद्ध में उसने कौरव पक्ष के साथ लड़ाई की। इस पाठ से हमें यह सीख मिलती है कि दान ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है, क्योंकि केवल दान ही स्थिर रहता है। शिक्षा समय-समय पर बदलती रहती है। वृक्ष भी समय के साथ नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा, जलाशय भी सूख जाकर समाप्त हो जाते हैं। इसलिए हमें किसी भी मोह से बचे बिना दान अवश्य करना चाहिए।

Karnsya Danveerta Class 10th Solution Notes

प्रश्‍न 4. दानवीर कर्ण ने इन्द्र को दान में क्या दिया ? तीन वाक्यों में उत्तर दें। (2011C)
अथवा, ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान की महत्ता को बताएं। (2016A)
उत्तर- कर्ण जानता था कि उसका कवच और कुण्डल उसकी जान बचाने के लिए है, फिर भी वह दानी स्वभाव वाला था। इसलिए उसने इंद्र रूपी याचक को खाली हाथ नहीं भेजा, उसे अपना कवच और कुण्डल दान में दे दिया।

प्रश्‍न 5. ‘कर्णस्यदानवीरता’ पाठ के नाटककार कौन हैं ? कर्ण किनका पुत्र था तथा उन्होंने इन्द्र को दान में क्या दिया? (2011A)
उत्तर- ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के नाटककार ‘भास’ थे। कर्ण कुन्ती के पुत्र थे और उन्होंने अपना कवच और कुण्डल इंद्र को दान में दिए थे।

प्रश्‍न 6. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर इन्द्र के चरित्र की विशेषताओं को लिखें। (2011A,2015A)
अथवा, ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर इन्द्र की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख करें। (2018A)
उत्तर- इंद्र स्वर्ग के राजा हैं, लेकिन उन्हें सदैव संदेह रहता है कि कहीं कोई उनका पद छीन न ले। वे स्वार्थी और छली होते हैं। महाभारत में, अपने पुत्र अर्जुन को विजय प्राप्त कराने के लिए वे ब्राह्मण के बनावट में छल से कर्ण का कवच और कुण्डल दान में ले लिया था, ताकि कर्ण अर्जुन से हार जाए।

प्रश्‍न 7. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान की महिमा का वर्णन करें।                               
अथवा, ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान के महत्व का वर्णन करें। (2016A, 2018C)
उत्तर- शल्य ने कर्ण के कवच और कुंडल इन्द्र को देने से रोक दिया था। इस पर कर्ण ने बताया कि शिक्षा समय के साथ नष्ट हो जाती है और बड़े-बड़े वृक्ष उखड़ जाते हैं और जलाशय सूख जाते हैं। लेकिन दिया गया दान सदैव स्थिर रहता है और अचल होता है।

प्रश्‍न 8. कर्णस्यणदानवीरता पाठ कहाँ से उद्धत है। इसके विषय में लिखें।
उत्तर- ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ भास द्वारा रचित कर्णभार नामक रूपक से उद्धृत किया गया है। इस रूपक की कथा महाभारत से ली गई है। महाभारत युद्ध में कुंतीपुत्र कर्ण कौरव सेना का सर्वोच्च सामंत होते हुए भी पांडवों के विरुद्ध लड़ता है। कर्ण के शरीर में जन्मजात कवच और कुंडल होने से वह असंभव से भी दुर्बल हो जाता है। इसलिए, इन्द्र ने छलपूर्वक कर्ण से कवच और कुंडल ले लिए और उन्हें पांडवों की सहायता की।

प्रश्‍न 9. कर्ण के प्रणाम करने पर इन्द्र ने उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद क्यों नहीं कहा?
उत्तर- इंद्र जानता था कि कर्ण को युद्ध में मरने की संभावना है। यदि वह कर्ण को दीर्घायु होने का वरदान दे देता तो कर्ण की मृत्यु युद्ध में संभव नहीं होती। लेकिन कर्ण इंद्र के आशीर्वाद को मूर्खता समझता है क्योंकि इंद्र ने उसे दीर्घायु होने का वरदान नहीं दिया था। इसके बजाय, उसने सूर्य, चंद्रमा, हिमालय और समुद्र जैसे यशस्वी होने के आशीर्वाद दिए।

प्रश्‍न 10. कर्ण ने कवच और कंडल देने के पूर्व इन्द्र से किन-किन चीजों को दानस्वरूप लेने के लिए आग्रह किया? (2018A)
उत्तर- इंद्र को कर्ण से बहुत बड़ा भिक्षा चाहिए थे। कर्ण नहीं समझ पा कि इस भिक्षा के रूप में इंद्र उनके कवच और कुंडल मांग रहे हैं। इसलिए कर्ण ने कवच और कुंडल देने से पहले इंद्र से अनुरोध किया कि वे हजारों घोड़े, हाथी, अनगिनत सोने के सिक्के और पृथ्वी, अग्निष्टोम फल या फिर उसका सिर दे दें।

प्रश्‍न 11. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर- ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ से हमें यह सीख मिलती है कि दान मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है। क्योंकि केवल दान ही स्थिर रहता है। शिक्षा समय-समय पर बदलती रहती है। वृक्ष भी समय के साथ नष्ट हो जाते हैं। इसी तरह, जलाशय भी सूख सकते हैं और अंत में समाप्त हो जाते हैं। इसलिए, किसी भी चीज के मोह में नहीं आकर, हमें निरंतर दान करते रहना चाहिए।

प्रश्‍न 12. कर्णस्य दानवीरता पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें। (2012C)
उत्तर- यह पाठ भास द्वारा रचित किया गया है जो संस्कृत के प्रथम नाटककार थे। इसमें महाभारत के प्रसिद्ध पात्र कर्ण की दानवीरता दिखाई गयी है। इसमें इंद्र कर्ण से छलपूर्वक उनके कवच कुण्डल को मांग लेते हैं और कर्ण उन्हें दे देता है। कर्ण बिहार के अंगराज्य (मुंगेर और भागलपुर) का शासक था। यह पाठ दान करते हुए मांगने वाले की पृष्ठभूमि जानने की महत्वपूर्णता बताता है। अगर कोई दान करता है तो उसे मांगना नहीं चाहिए। इससे परोपकार विनाशक बन जाता है।

प्रश्‍न 13. इन्द्र ने कर्ण से कौन-सी बड़ी भिक्षा माँगी और क्यों?
उत्तर- इंद्र ने अपने पुत्र अर्जुन की मदद के लिए कर्ण से उसके कवच और कुंडल मांगे। कर्ण कौरव पक्ष से युद्ध कर रहे थे और इंद्र को पांडवों को युद्ध में जीतने के लिए कर्ण के कवच और कुंडल की आवश्यकता थी। इंद्र ने कर्ण से बड़ी भिक्षा के रूप में इन्हें मांगा। कवच और कुंडल के बिना कर्ण की मृत्यु संभव थी इसलिए इंद्र ने इन्हें मांगे थे।

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प्रश्‍न 14. शास्त्रं मानवेभ्यः किं शिक्षयति? (2018A)
उत्तर- मनुष्य के कर्तव्य और अकर्तव्य का ज्ञान शास्त्रों से होता है। शास्त्र ज्ञान का स्रोत होते हुए कर्तव्य-अकर्तव्य, सत्य-असत्य और अन्य विषयों की जानकारी प्रदान करते हैं।

प्रश्‍न 15. कर्ण की दानवीरता का वर्णन अपने शब्दों में करें। (2011C,2014A,2015C)
उत्तर- कर्ण सूर्यपुत्र होते हुए अपने जन्म से ही कवच और कुण्डल प्राप्त करता है। जब तक कवच और कुण्डल उसके शरीर में विद्यमान होते हैं, तब तक उसे कोई भी मार नहीं सकता। कर्ण महाभारत युद्ध में कौरवों के पक्ष में लड़ता है। वह दानवीर होते हुए अपनी सूर्योपासना में लगा रहता है। अर्जुन इन्द्रपुत्र होते हैं और वह इन्द्र के पुत्र होने के नाते कर्ण से कवच और कुण्डल माँगने जाते हैं। कर्ण को इन सब के बावजूद भी, इन्द्र जानते हुए कर्ण से उनके पुत्र होने के कारण उन्हें कवच और कुंडल दे देते हैं। शायद इसलिए कि इन्द्र जानते हुए भी कर्ण को उसके स्वर्णकुंडल में विश्वास था।

12. कर्णस्य दानवीरता Objective Questions

प्रश्‍न 1. ‘कर्णस्य दानवीरता‘ पाठ किस ग्रंथ से संकलित है ?
(A) कर्णभार से   
(B) वासवदत्त से
(C) हितोपदेश से
(D) पुरूषपरिक्षा कथा ग्रंथ से

उत्तर- (A) कर्णभार से

प्रश्‍न 2. ‘महत्तरां भिक्षा याचे‘ यह किसकी उक्ति है ?
(A) कर्ण की  
(B) शल्य की
(C) कृष्ण की
(D) इन्द्र की

उत्तर- (D) इन्द्र की

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प्रश्‍न 3. सूर्यपुत्र कौन था ?
(A) भीम   
(B) अर्जुन
(C) कर्ण   
(D) युधिष्ठिर

उत्तर- (C) कर्ण

प्रश्‍न 4. भास के कितने नाटक है ?
(A) 10   
(B) 13
(C) 15    
(D) 11

उत्तर- (B) 13

प्रश्‍न 5. कर्ण किसके पक्ष से युद्ध लड़ रहा था।
(A) कौरव  
(B) पाण्डव
(C) राम    
(D) रावण

उत्तर- (A) कौरव

प्रश्‍न 6. ब्राह्मण रूप में कौन प्रवेश किया ?
(A) इन्द्र   
(B) विष्णु
(C) कृष्ण
(D) अर्जुन

उत्तर- (A) इन्द्र

प्रश्‍न 7. दानवीर कौन था ?
(A) भीम   
(B) अर्जुन
(C) कर्ण    
(D) युधिष्ठिर

उत्तर- (C) कर्ण

प्रश्‍न 8. कर्ण किस देश का राजा था ?
(A) अंग        
(B) मगध
(C) मिथिला    
(D) काशी

उत्तर- (A) अंग

प्रश्‍न 9. कर्ण किसका पुत्र था ?
(A) कुंती   
(B) कौशल्या
(C) कैकेयी
(D) शकुन्तला

उत्तर- (A) कुंती

प्रश्‍न 10. भिक्षुक किस वेश में आया था ?
(A) राजा
(B) भिखारी
(C) मंत्री
(D) ब्राह्मण

उत्तर- (D) ब्राह्मण

प्रश्‍न 11. कवच और कुण्डल किसके पास था ?
(A) इन्द्र  
(B) भीष्म
(C) कृष्ण
(D) कर्ण

उत्तर- (D) कर्ण

प्रश्‍न 12. कर्ण के कवच-कुण्डल की क्या विशेषता थी?
(A) वह बड़ा था
(B) वह सोने के था
(C) वह बहुत चमकिला था
(D) उसे भेदा नहीं जा सकता था।

उत्तर- (D) उसे भेदा नहीं जा सकता था।

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